*पत्रकार तो हमें निष्पक्ष और ईमानदार ही चाहिए?*
।। व्यंग्य ।।
भले ही नेता भ्रष्ट चुन ले हम और अधिकारी को लिफाफा दे दे के रिश्वत खोर बना दें लेकिन भैया कुछ भी हो पत्रकार तो हमें ईमानदार ही चाहिए!
मामला भी बड़ा संगीन है और बात एक तरह से सही भी मालूम होती है, पर गले से नहीं उतरती!600000/ से 100000/ रु तनख्वाह लेने वाले अधिकारी और नेता भले ही बेईमान हो तो चलेगा! लेकिन सारी ईमानदारी का ठेका तो पत्रकार ने ले रखा है!
इसलिए एक पत्रकार को न अधिकारियों से कोई विज्ञापन लेना चाहिए और न सरकारी विभागों से और न पंचायत से! ईमानदारी से अपना काम करना चाहिए! भले ही हम खुद ईमानदार हो न हो उससे क्या फर्क पड़ता है!
ईमानदार पत्रकार अगर मिल जाए तो मजा ही आ जाता है, क्यों कि अगर ईमानदार पत्रकार अपने पारिश्रमिक की मांग करे तो उसे भाषण देकर ही शांत करवाया जा सकता है है और फिर बड़ी बड़ी बातों से ("पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है और पत्रकारिता एक मिशन है कमीशन के फेर में नहीं पड़ना चाहिये और पत्रकरिता समाज की सेवा है और इस सेवा के लिए यदि अपनी जेब से भी कुछ लगाना या गलाना पड़े तो परवाह नहीं करनी चाहिए ") ऐसे पत्रकारों को चलता भी किया जा सकता है, इन्हें मेहनताने की क्या जरूरत!
अब माना कि पत्रकार का भी घर है, बच्चे है,परिवार चलाना है तो क्या?हमें तो सिर्फ नेता और अधिकारी ही भ्रष्ट रिश्वतखोर अच्छे लगते हैं! क्यों की इन्हें हम ही तो अपने वोट से चुनते हैं!
तो क्या देखा नहीं है तुमने , जिन्हें हम चुनते हैं वो भी पांच साल में एक बार (चुनाव के समय) पौवा,अद्धी, माल(गांजा) और यहां तक कि साड़ी और 500 से लेकर 1000 रु तक दे देते हैं!इसलिए हम ऐसे नेता से खुश रहते हैं,रही बात सरकारी बाबू की तो भले ही वो जनता के खून पसीने की कमाई के टैक्स से 1000000 रु तनख्वाह लेता है और उसके बाद भी रिश्वत लेता है,तो क्या फिर ओवर टाइम करके हमारा काम भी तो रातों रात कर देता है और पत्रकार करता ही क्या है! खबर ही तो दिखाता है! देश या प्रशासन थोड़े ही चलाता है! जो उसे पारिश्रमिक की आवश्यकता पड़े!
और फिर नेता और अधिकारी जो हमसे बड़े बड़े आश्वासन और दावे करते हैं तो वहीं हम पत्रकारों से करते हैं!जैसे आप तो महान पत्रकार हैं, समाज के लिए आपकी जरूरत है,गरीबों के आप ही मसीहा हो! तो बताओ हम कौन सा गलत काम करते हैं!
अब भले ही हमारे चुने हुए लोग गुंडे पालते हों और हमारे रक्षक ही हमारे भक्षक बन जाते हो और हम खुद हजार तरह के गलत काम करते हों तो क्या हुआ!