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क्या आज एक औरत को यौन इच्छा की वस्तु से अधिक कुछ भी नहीं माना जा रहा है?

यदि ऐसा है तो पुरुष की खुशी के लिए सेक्सी या हॉट दिखने के अलावा किसी अन्य चीज़ के रूप में एक महिला के महत्व को कम करके आंका जा रहा है?

एक औरत को किसी उपभोग की वस्तु के समान समझना, जबकि यह भूल जाना कि वह एक सक्षम और विचारशील इंसान है।आज के इस आधुनिक दौर की बड़ी विडंबना है।

आज न सिर्फ बॉलीवुड मूवीस में बल्कि वेब सीरीज और सोशल मीडिया पर मौजूद अन्य अनेकों ऐसे वीडियो हैं जिनमें स्त्रियों को नग्न होते, कपड़े उतारते और मर्दों को रिझाते हुए दिखाया जा रहा है। कहीं  यह विज्ञापन के नाम पर तो किसी वीडियो में यह प्रेम प्रदर्शन के नाम पर पुरुष के सामने प्रदर्शित किया जा रहा है।

आइटम गीत, स्त्रियों के जिस्म की नुमाइश और अश्लील दृश्य प्रस्तुत करना, आज ज़्यादा-से-ज़्यादा कमाई करने का नुस्खा बन चुके हैं।

अनावश्यक कामुकता के रंगीन माया जाल में स्त्री देह को एक उत्पाद की तरह प्रस्तुत किया जाना चिंतिणी है! आज विज्ञापनों की दुनिया की नारी सम्पूर्ण स्त्रीत्व की प्रेरणा और मनोबल से ओत-प्रोत लगती है।

महिला किरदारों को अक्सर खुले कपड़ों में और कामुक नृत्य करते हुए दिखाया जाता है। ये गाने अक्सर भद्दे और अश्लील होते हैं और कैमरा महिला रूप पर टिक जाता है, जिससे उनका वस्तुकरण और अधिक बढ़ जाता है।जैसे आंखे बड़ी, सुंदर शारीरिक बनावट और शरीर के अंगों का उतार चढ़ाव सामान्य से अधिक। वेब सीरीज पर ऐसी अनेक content मोजूद है जिनमें अश्लीलता की सभी हदें पार हो गई हैं।

अश्लील सिनेमा/वेब /साहित्य के वाहक का व्यवसाय केवल यौन सुख प्रदान करना है?

अभीव्यक्ति की आजादी और दर्शकों की डिमांड जैसी बातों की आड़ में जिस तरह से औरत का प्रस्तुतीकरण किया जा रहा है यह समाज में फैली हुई एक कुंठा को दर्शा रहा है।

विज्ञापनों में उत्तेजित करते दृश्य धीरे-धीरे कब मानसिक विकृति पैदा कर देते हैं, हमको पता भी नहीं चलता।आज वाट्सएप जैसे सोशल मीडिया पर मित्रों के बीच अश्लील फिल्मों का आदान-प्रदान बेहद आम है। 

इसे आप शारीरिक कुंठा और मानसिक विकृति नहीं कहेंगे तो फिर क्या कहेंगे? जिसकी वजह से महिलाओं के साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न की संभावना कहीं अधिक है।

आमतौर पर यह देखा गया है कि बलात्कार और यौन हमले किसी महिला द्वारा जानने वाले किसी व्यक्ति द्वारा किए जाते हैं, जिसमें पति, पूर्व-पति, प्रेमी और पूर्व-प्रेमी शामिल हैं।

आप कुछ प्राचीन जानकारी की पुस्तक उठा कर देखें तो अक्सर उसमें यह जिक्र आता है कि महिलाओं में भूख दोगुनी, लज्जा चार गुणी, साहस 6 गुणा और काम वासना 8 गुण ज्यादा होती है! क्या यह पुरुष प्रधान समाज की पितृसत आत्मक मानसिकता को नहीं उजागर करता है?जबकि आज जानकार विशेषज्ञों का यह दावा है कि रिसर्च से यह भी पता चला कि पुरुषों की कामवासना महिलाओं की तुलना में अधिक होती है।

जहां तक मेरा मानना है कि महिला कामुकता के बारे में हम जो भी मानते हैं वह बहुत कुछ गलत है। इसको समझने के लिए के लिए बहुत बड़ी बहस की जरूरत नहीं है, सहजता से समझा जा सकता है। एक औरत को किसी यौन भोग्या के रूप में देखना, स्त्री शरीर के प्रति कामुक बने रहना मानसिक यौन विकृति है।

सेक्स पर खुलकर बात नहीं होती इसलिए लोगों के मन में कई सवाल उलझे रहते हैं।महिला जब तक किसी पुरुष से मन से नहीं जुड़ती, उससे शारीरिक संबंध नहीं बना पाती लेकिन इसके विपरीत पुरुष की कामुकता मुख्य रूप से शरीर से जुड़ी होती है।

















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