भाभी ; आंटी ; रिश्तों की आड़ में हवस?
रविवारीय विशेषांक | विश्लेषण रिपोर्ट
जब हमने सोशल मीडिया की दुनिया में झांककर देखा — तो दृश्य चौंकाने वाले थे। फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म पर “भाभी”, “साली”, “आंटी” जैसे रिश्तों के नाम पर अश्लीलता का बाजार खुला पड़ा है। कम कपड़ों में, अर्धनग्न तस्वीरों की हजारों प्रोफाइलें, बेहूदा कैप्शन और नीचे अश्लील कमेंट्स की बाढ़ — यह न सिर्फ शर्मनाक है बल्कि रिश्तों की पवित्रता के साथ किया गया एक बड़ा अपराध है।
“भाभी अब सोशल मीडिया पर एक ‘कीवर्ड’ बन चुकी है — जिसे टाइप करते ही अश्लीलता की असीम दुनिया खुल जाती है!”
📱 सोशल मीडिया या ‘सेक्स मीडिया’?
अब ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया का नाम बदलकर ‘सेक्स मीडिया’ रखना चाहिए। अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर रिश्तों का उपहास और अश्लीलता का प्रचार हो रहा है। “भाभी” शब्द जो कभी मर्यादा और स्नेह का प्रतीक था, आज ‘हवस’ की चौखट पर खड़ा है।
⚖️ रिश्तों का नया सौदा
शादी के बाद के रिश्ते — जैसे जीजा-साली, देवर-भाभी — कई मायनों से संवेदनशील होते हैं। जब साली आधी घरवाली हो सकती है तो देवर आधा पति क्यों नहीं? ऐसी घटिया सोच समाज के लिए खतरनाक संकेत है। सोशल मीडिया पर यह मानसिकता एक मनोरंजन नहीं, बल्कि नैतिक पतन की शुरुआत है।
🎭 ‘रिश्ते’ या ‘रिल्स’?
सोशल मीडिया पर मौजूद वीडियो और रीलें अब रिश्तों की मर्यादा को समाप्त कर रही हैं। ऐसे कंटेंट घर के सभी सदस्यों के सामने देखना भी शर्मनाक लगता है — और बच्चे व किशोर इनका असर सबसे पहले महसूस करते हैं।
क्या पुरुष हर दूसरी स्त्री को केवल भोग की वस्तु के रूप में ही देखता है?
🌏 संस्कृति बनाम ‘क्लिकबेट’
जिस भारत को हम विश्वगुरु कहते थे, वही आज ‘ट्रेंडिंग’ और ‘क्लिक्स’ की होड़ में गिर रहा है। विज्ञापन, वेब सीरीज़ और फिल्मों में महिलाओं की वस्तुवादिता युवाओं के चेतन मन पर गहरा असर डाल रही है। यह समाज के चरित्र को खोखला कर रही है।
📺 विज्ञापन और वेब सीरीज़ की वासना
परफ्यूम, अंडरवियर, शेविंग ब्लेड जैसे विज्ञापनों में महिलाओं को जिस तरह से दिखाया जाता है, वह चिंताजनक है। ब्रांड के प्रचार में स्त्री की देह को इस तरह से उपयोग करना समाज के नैतिक पतन की निशानी है।
🚫 पुरुष वर्चस्व और स्त्री की स्थिति
हमारे समाज की पितृसत्तात्मक संरचना ने वर्षों से महिलाओं को वस्तु बनाकर रखा है। डिजिटल युग में यह प्रवृत्ति और भी भड़क गई है। स्त्री को ‘प्रोडक्ट’ की तरह परोसना आज सामान्य होता जा रहा है — और यही सबसे बड़ा खतरा है।
👦 बच्चों के मन पर असर
किशोर जो अभी पढ़ना-लिखना सीख रहे हैं, वे अश्लील सामग्री की ओर आकर्षित होते हैं। यह आकर्षण कभी-कभी आपराधिक प्रवृत्तियों को जन्म दे देता है। यह भविष्य के नागरिकों के मानस को विषाक्त कर रहा है।
“रिश्ते अब रिश्ते नहीं रहे — सोशल मीडिया पर वे केवल कंटेंट बनकर रह गए हैं।”
❓कौन बचाएगा रिश्तों की पवित्रता?
आज सोशल मीडिया पर हर रिश्ते के नाम पर अश्लील कंटेंट उपलब्ध है — मां-बेटे, बाप-बेटी, भाई-बहन, जीजा-साली, देवर-भाभी — कोई भी रिश्ता सुरक्षित नहीं। यह केवल इंटरनेट का गंदा कोना नहीं, बल्कि हमारी सोच का आईना है।
🧭 अब सवाल यह है —
- क्या यह वही भारत है जो अपनी संस्कृति पर गर्व करता था?
- क्या सोशल मीडिया कंपनियों की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं?
- क्या हम अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हवस को बढ़ावा दे रहे हैं?
समाज तभी सुधरेगा जब हम तय करेंगे कि क्या देखना है, क्या साझा करना है, और किन मूल्यों की रक्षा करनी है। अब वक्त है कि हम डिजिटल स्वतंत्रता को जिम्मेदारी के साथ समझें।
✍️ लेखक: विक्रम सिंह राजपूत
संपादक, STRINGER24NEWS
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