आज कोई एडिटिंग नहीं, व्याकरण के शुद्ध उच्चारण की जरूरत नहीं,बस दो बातें दिल की कलम से, , जो पहुंच सके आपके दिल तक, , !
आज कोई खबर नहीं बनाना चाहता!बस वो लिखना चाहता हूं,जो मैं सोचता हूं,जो आपसे कहना चाहता हूं!
2 नवम्बर से मां नर्मदा की परिक्रमा यात्रा पर जा रहा हूं!अकेला, , !कोई पत्रकारिता वाली पब्लिसिटी नहीं, कोई खबरों की दुनिया नहीं,बस मां नर्मदा का आंचल और मैं!
सबसे अच्छी बात हैं मेरी पत्नी ने भी इस यात्रा के लिए अपनी सहमति दी और मेरा बरसों का सपना आज साकार होने जा रहा है!
सच कहूं तो आने वाले कुछ दिन बस मां की गोद में आराम करना चाहता हूं!क्यों कि,नर्मदा, , इस नाम में ही पता नहीं कैसा आकर्षण है,सुकून है, , जो खींच लेता है अपनी तरफ!
भला किसे घर का आराम अच्छा नहीं लगता, , ?फिर भी लोग नर्मदा परिक्रमा करते हैं, , कर रहे हैं, , और ऐसा नहीं के ये सब अशिक्षित हैं, अल्प शिक्षित या गरीब मजदूर हैं, , इन यात्रियों में हजारों ऐसे लोग हैं, जो बड़े ओहदों पर हैं!लाखों करोड़ों का सालाना टर्न ओवर कमाने वाले व्यापारी हैं!कोई बैंक सेक्टर से है,तो कोई आईटी सेक्टर से, , ये सभी अच्छे खासे शिक्षित संभ्रांत घरों से हैं!
सालों साल से लाखों करोड़ों लोग नर्मदा के इस गूढ़ प्रेम को महसूस करते रहे हैं!एक ऐसी अदृश्य शक्ति जो आपको अपनेपन का ना सिर्फ अहसास कराती है, बल्कि अपने अस्तित्व का भी अहसास कराती है!
परिक्रमा की इस यात्रा में एक भिक्षु की तरह आपको अपनी साधना पूरी करने होती है!यात्रा में जो मिला ठीक, ,नहीं मिला ठीक, ,खा लिया तो ठीक, ,नहीं खाया , ,तो उपवास करते हुए , , , ,मां के साथ चलते रहना!
फिर भी लोग जाते हैं!वो मां नर्मदा के लिए भिक्षा भी मांगने को तैयार हैं, , क्यों, , ये शाश्वत प्रेम नहीं तो और क्या है?दरअसल भिक्षा मांगने से अंहकार का त्याग होता है,समर्पण का भाव जन्म लेता है,मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप से साक्षात्कार का अवसर पाता है!
मैने देखा है, ,अनेक पद यात्री बड़े ओहदों पर होने के बावजूद , , नर्मदा परिक्रमा यात्रा में दान में मिले भोजन पर ही अपनी परिक्रमा पूर्ण कर रहे हैं!
सामान्य बुद्धि इस गूढ़ रहस्य को समझ नहीं सकती!इसे समझना है,महसूस करना है,तो मां नर्मदा के साथ ही किया जा सकता है!
तो बस अपना बैग तैयार किया, , और तैयारी है, , इस आध्यात्मिक यात्रा के अगले चरण की!
 
