*महिला सरपंच कब तक भ्रष्टाचार और शोषण की भेंट चढ़ती रहेंगी?*
।। विवेचना।।
सरपंच और भ्रष्टाचार से जुड़ी अनेक खबरें आपने पढ़ी होंगी! कई बार आपने सुना होगा कि, ग्राम पंचायत में रिकवरी वसूली गई और सरपंच को जेल हुई! यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है,आज भी मीडिया में ऐसी हज़ारों खबरें आपको तैरती हुई मिल जाएंगी!
दलित और आदिवासी महिला सरपंचों के पद पर चुनाव तो जीत गई किन्तु उनके वास्तविक अधिकारों का इस्तेमाल गाँव के ही दबंग लोग कर रहे हैं!यही नहीं वे सरकारी पैसों का दुरूपयोग भी कर रहे हैं! और जाँच में दोषी पाए जाते हैं तो इन दबंगों की बजाय महिला सरपंच ही कानून के दायरे में आ जाती है!
तो क्या वाकई पंचायत में होने वाले गबन में हर बार मुख्य भूमिका में सिर्फ सरपंच होता है?आमतौर पर जहां महिला सरपंच हैं, उन ग्राम पंचायतों में तो अक्सर ही गबन और भ्रष्टाचार की जानकारियां सामने आती रहती हैं! तब ऐसे में क्या सरपंच को दोषी ठहराया जाना उचित है?
यदि आप पंचायत में होने वाले गबन, हेर फेर और भ्रष्टाचार के मामलों का गहन विश्लेषण करें तो आप पाएंगे कि,अधिकतर मामलों में महिला सरपंच निर्दोष हैं!वास्तविकता तो यह है कि, महिला सरपंच को तो इस बात की जानकारी ही नहीं होती है कि, ग्राम पंचायत में क्या चल रहा है?जनपद में बैठे जिम्मेदारों को अपने कमीशन से मतलब होता है,गांव का विकास और शासन की मंशा से शायद इनका कोई लेना देना नहीं होता है!
हाल ही में नरसिंहपुर जिले की 10 ग्राम पंचायतों में किए गए सर्वे में चौकाने वाली जानकारी मिली है। सरपंच के पद पर चुनी हुई महिला सरपंच की बजाय या तो उसके पति, बेटा, ससुर और देवर पंचायत का कामकाज देख रहे है या दबंगों ने कब्जा कर रखा है।
हालात इतने बदतर हैं कि आज भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पंचायतों की महिला सरपंच मजदूरी और अन्य के घरों में झाडू पोछा करके अपना गुजारा कर रही है!
सरपंच पति कब तक यह कहकर पत्नी को बहलाते रहेंगे कि महिलाओं को राजनीति की समझ नहीं होती है’ दरअसल ऐसी सोच रखने वाले लोगों की जमात, इस सच्चाई को निरंतर झुठलाने का प्रयास करती है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील, बेहतर प्रबंधक और दूरदर्शी होती हैं।