*गड़रिया खेड़ा से पिंडारियों का रिश्ता?: अतीत के झरोखे से:नरसिंहपुर*
*मैं नरसिंहपुर बोल रहा हूं!" पुस्तक से कुछ अंश, , , रविवारीय विशेषांक में इस बार खास , , पिंडारी और नरसिंहपुर*
*यहां पर सबसे पहले मैं उन ग्रामीणों और ग्राम पंचायतों का विशेष आभार व्यक्त करना चाहूंगा,जिन्होंने ऐतिहासिक साक्ष्यों के अन्वेषण के दौरान सहयोग प्रदान किया और पुस्तक का यह अंश गड़रिया खेड़ा से पिंडारियों का रिश्ता पूर्ण हो सका।*
सबसे पहले तो हम आपको बताते हैं कि,नरसिंहपुर के वृद्ध जनों का इस पर क्या कहना है! गड़रिया खेड़ा से पिंडारियों का रिश्ता क्या था? इस संबंध में स्थानीय लोगों का क्या कहना है? खासतौर पर उन बुजुर्गों का जिनका ऐतिहासिक घटनाओं का जानने में रुझान रहा हो! हालाकि यह बेहद दुष्कर कार्य था,किंतु ग्रामीणों और ग्राम पंचायतों के सहयोग से हम तथ्यों को खंगालने और समझने में सफल हुए!
कहते हैं कि,नरसिंहपुर शहर के कंदेली क्षेत्र में आज जहां रविवारीय बाजार लगता है,बरसों पहले उस स्थान पर घना जंगल मौजूद था और उस समय उक्त स्थान पर आसपास के ग्रामीण आकर पेड़ों के नीचे अपनी बैलगाड़ियां बांधकर विश्राम करते थे।
इसी स्थान रविवारीय बाजार पर पिंडारियों का भी रुकना हुआ करता था! पिंडारी इतिहास में काफी बदनाम है! क्यों की ये एक तरह का ठग समुदाय था,जो राहगीरों को लूटकर पीले कपड़े में सिक्का बांधकर उससे अपने शिकार का गला घोट कर जमीन में दफना दिया करते थे!पिंडारियों का सरगना बहराम बेहद ही निर्दयी था, कहा जाता है कि,बहराम ने अपने जीवन में 900 से भी अधिक हत्याएं की थी।
कहा जाता है कि जब पिंडारी किसी समूह को लूटना चाहते थे तो वे रातों रात नकली गांव और बाजार बसा लिया करते थे और लुट के बाद घने जंगलों में जाकर छिप जाया करते थे।
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