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*शादी के बाद प्यार या दोस्ती का रिश्ता?*

हमारा सामाजिक ढांचा ऐसा है कि यहां पुरुष अपनी भावनाएं ज़्यादा आसानी से ज़ाहिर कर लेते हैं जबकि महिलाओं के लिए ये आसान नहीं होता।

तमाम ऐसी सर्च जारी हैं,जो यह बता रही हैं की भारतीय समाज में शादीशुदा रिश्ते बोझ और समझौते में तब्दील होते जा रहे हैं। कई बार तो रिश्ते सिर्फ इस बुनियाद पर टिके होते हैं की यदि पति पत्नी अलग हुए तो बच्चों के भविष्य पर इसका असर पड़ेगा। इन रिश्तों में कोई भावनात्मक संबंध नही रह जाता है।

एक समय बाद लोग इसे अपने रिश्ते की नियति मान लेते हैं। साथ रहना, खाना, उठना-बैठना, दिखावा सब होता है, बस भावनात्मक लगाव और स्नेह नहीं होता।

पार्टनर्स अगर लंबे समय तक रिश्ते से मुंह मोड़े रखें तो धीरे-धीरे रिश्ते में उकताहट पैदा होने लगती है।लेकिन सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और निजी कारणों से लोग भावनात्मक दूरी के बावजूद रिश्ता खत्म करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ा पाते हैं।

पिछले एक दशक में भारतीयों के सोचने और ज़िंदगी जीने के तरीके में काफ़ी बदलाव आया है।यदि आज आप आधुनिक भारत की बात करते हैं तो जो काम लड़के कर सकते हैं, वो लड़कियां भी कर सकती हैं। इसमें स्टॉकिंग से लेकर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर भी शामिल है।

आज आप अतरंगी खिलौनों के बाजार को ही देख लें,पुरुषों की तृप्ति के लिए मोडिफाइड सिलिकॉन डॉल है तो महिलाओ के लिए भी अनेक प्रोडक्ट है,इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर मोजूद लाखों करोड़ों अश्लील फोटो वीडियो के साथ करोड़ों पोर्न वेबसाइट्स की मोजुदगी आज के समाज का वो आईना है,जिस पर आधुनिकता की गर्त चढ़ी हुई है।

महिला चाहे कोई भी परेशानी हो शादी को चलाने की कोशिश करेगी,जबकि आमतौर पर पुरूष प्रधान समाज में पुरुषों पर इतनी पाबंदियां नहीं हैं।

वहीं समाज महिलाओं को एक अलग नज़रिए से देखता है जहां उसे समाज के चश्मे और नैतिकता के मापदंडों पर जीना पड़ता है।

दरअसल मामले का एक और भी पहलू है,जिस पर साइको थेरेपिस्ट रिसर्च कर रहे हैं।दरअसल पति पत्नी के बीच बिगड़ते रिश्तों में तनाव बढ़ जाता है,तब अक्सर कपल अपनी जिंदगी को एक अलग तरीके से जीना शुरू कर देते हैं,इस बीच पति हो या पत्नी शराब पीने से लेकर अपने महिला या पुरुष मित्र से जुड़ने लगते हैं लेकिन हर बार यह संबंध अनैतिक हों,यह जरूरी नही है।खासतौर पर महिलाओं के मामले में।

हमने इस विषय को लेकर पचास महिलाओं के एक समूह पर सर्वे आधारित विश्लेषण किया।नतीजे चौकाने वाले थे,किंतु सत्य के करीब थे।

सर्वे में शामिल महिलाओं के शादी के बाद संबंधों का प्रतिशत 40.24 था,जबकि इनमें दैहिक संबंध बनाने वाली महिलाओ का प्रतिशत 16.5 था,लेकिन इसके विपरित 76 फीसदी महिलाओं पर बेवफा और धोखा देने वाली जैसे इल्जाम लगे,वहीं 28 फीसदी महिलाओं ने माना कि शादी के बाद प्यार या दोस्ती का रिश्ता उनके लिए महज समय बिताने का साधन था,जबकि उन्हे उस नए रिश्ते में भी कोई दिलचस्पी नहीं थी,बल्कि अपने पति से मिले खालीपन को वे सिर्फ बातों के जरिए भरना चाहती थी।

दरअसल अधिकांश महिलाओं का यह मानना था की, वे अपने भावनात्मक खालीपन को भरने के लिए मित्र पुरुषों से संबंध स्थापित करती हैं,लेकिन हर बार यह शारीरिक संबंध में तब्दील हुए हों,ऐसा भी नहीं है। समाज को अपने ग़लत नज़रिए का चश्मा उतारने की ज़रूरत है।

औरतें हर मुद्दे पर अपना मत रख सकती हैं, उनके पास भी दिल और दिमाग़ और उनके अधिकार है ,लेकिन पुरूष प्रधान समाज में औरत से चुप रहने की उम्मीद की जाती है।अब यह तो आप भी जानते हैं कि ऐसे मुद्दे पर औरत की सोच को तरज़ीह नहीं दी जाती है,अहमियत देने की तो आप उम्मीद नही कर सकते हैं।







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