*पंचायत में गबन तो सिर्फ सरपंच निशाने पर क्यों?:जनपद अधिकारियों पर क्यों बरती जाती है मेहरबानी?*
अमूमन यह देखने में आता है कि ,जब भी किसी ग्राम पंचायत में आर्थिक अनियमितता पाई जाती है तो,सरपंच,सचिव और जीआरएस को निशाना बनाया जाता है और तो और मीडिया ट्रायल का दुष्परिणाम भी सिर्फ इन्हें ही झेलना पड़ता है! आखिर इसकी वजह क्या है?
आपने भी कभी ना कभी तो यह विचार किया ही होगा कि ,आखिर क्यों किसी एई से सवाल नहीं किया जाता है? क्यों जनपद सीईओ से सवाल क्यों नहीं किया जाता है?क्या ये सभी दूध के धुले हुए हैं और सिर्फ सरपंच सचिव जीआरएस भ्रष्टाचार करते हैं?
या फिर इसलिए जनपद के अधिकारियों से सवाल नहीं किए जाते क्यों कि ये सोने का अंडा देने वाली मुर्गियां है! यह कैसे संभव है कि, पंचायत में गबन हो और अधिकारियों को सुध ही न हो?
जाहिर सी बात है कि, पंचायत में होने वाले गबन बिना अधिकारियों की मिलीभगत के संभव ही नहीं है! बल्कि वास्तविकता तो यह है कि गबन की रूपरेखा और आदेश जनपद अधिकारियों के इशारे पर ही निकलते हैं! इतना ही नहीं बल्कि यह तक कहा जाता है कि,इस गबन के पैसों की बंदरबाट में हिस्सा कुछ बड़े नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों तक भी जाता है!फिर इस सबके बावजूद सरपंच सचिव और जीआरएस को ही क्यों निशाना बनाया जाता है?
आपने भी देखा ही होगा कि जब भी पंचायत में हेर फेर की बात होती है तो, शिकायतों से लेकर धरना प्रदर्शन में सिर्फ सरपंच सचिव और जीआरएस का नाम उछाला जाता है जबकि शिकायत कर्ता से लेकर मीडिया में अधिकारियों से सवाल नदारद दिखाई देते हैं!
इसमें भी एक मजेदार बात यह है कि,गबन के ऐसे मामलों में ग्राम रोजगार सहायक को बलि का बकरा बना दिया जाता है और नाम मात्र की रिकवरी निकाल कर न्याय देने का ढिंढोरा पीटा जाता है!
जनपद अधिकारी ही है जिन्होंने महिला सशक्तिकरण की अवधारणा को ही कलंकित करके रख दिया है!ये जनपद के अधिकारियों की ही कारगुज़ारी है जो, कमीशन के खेल में खुद तो बच निकलते हैं और फंसा दिया जाता है सरपंच सचिव और जीआरएस को?जनपद अधिकारियों के इशारे पर ही फर्जी बिल पास भी हो जाते हैं? और इस सबका खामियाजा भुगतना पड़ता है सरपंच सचिव और जीआरएस को!
आप विचार करके बताइएगा की, पंचायत में हुए गबन पर कितने अधिकारियों के खिलाफ न्यायिक कार्यवाहियों की गई? कितने जनपद अधिकारियों के विरुद्ध आंदोलन हुए और मीडिया में कितनी बार जनपद अधिकारियों से सवाल किए गए?
दरअसल जनपद अधिकारी चाहते हैं कि, सरपंच सचिव और जीआरएस के इर्द गिर्द ही गबन और शिकायतों का खेल चलता रहे? इससे सिर्फ सरपंच सचिव और जीआरएस के ही हिस्से में बदनामी और नुकसान आए और अधिकारी बचे रहें!
जनपद अधिकारी बचे रहेंगे तभी तो मालामाल बनने का सिलसिला जारी रहेगा?पंचायत को टारगेट करते रहो तभी अधिकारियों की कृपा भी बरसती रहेगी? बड़ा माल भी तो वही है! वरना सरपंच और सचिव से कब तक हजार, पंद्रह सौ,तीन हजार लेते रहेंगे?
जनपद अधिकारियों के सर पर बड़े नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का हाथ है?और सरपंच का धनी धोरी है ही कौन? सरपंच तो आज है कल नहीं!इसलिए गबन और जांच के इस खेल में छोटी मछली को फसने दो?रही बात जनपद अधिकारियों की तो उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा?शिकायत कर्ता का इतना सामर्थ्य कहां की वो जनपद के बड़े अधिकारियों,प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं से सवाल कर सके?
।। विश्लेषण।।