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पंचायत रेडियो विशेषांक | पंचकोसी परिक्रमा 2025

🌿 नर्मदा परिक्रमा : समर्पण की राह

भिक्षा, तप और समर्पण की राह पर चलती नर्मदा परिक्रमा — आत्मा की सबसे लंबी यात्रा

नदी तट पर दोपहर की बेला है। तपती धूप में एक परिक्रमा वासी झोली लिए बैठा है — उसके सामने भिक्षा में मिली रोटी और नर्मदा का जल। आसपास कोई शोर नहीं, बस हवा में बहती ‘जय नर्मदे हर’ की पुकार। यही तो है नर्मदा परिक्रमा का असली अर्थ — समर्पण की राह

“यात्रा जितनी बाहरी है, उतनी ही भीतर की भी। हर कदम आत्मा को उसकी जड़ों तक ले जाता है।” — परिक्रमा वासी साधु

नर्मदा — सिर्फ नदी नहीं, एक जीवंत साधना

नर्मदा को शास्त्रों में ‘रेवा’ कहा गया है, जो हर पाप को बहा ले जाती है। कहा जाता है कि गंगा स्नान से जो फल मिलता है, वह नर्मदा दर्शन मात्र से प्राप्त होता है। परिक्रमा वासी महीनों तक चलते हैं — बिना पैसे, बिना वाहन, सिर्फ विश्वास और आस्था के सहारे।

यह यात्रा किसी पर्यटन की नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि की है। जब व्यक्ति अपने अहंकार, सुविधा और आराम को पीछे छोड़कर चलता है, तब उसे पता चलता है कि त्याग ही सबसे बड़ा धन है।

भिक्षा में भोजन, भक्ति में संतोष

परिक्रमा मार्ग पर एक नियम है — भिक्षा में जो मिले, वही प्रसाद। न कोई संग्रह, न कोई आग्रह। यह नियम परिक्रमा वासियों को सिखाता है कि जीवन चलाने के लिए बहुत कम की ज़रूरत होती है।

“जब भूख लगती है तो माँ नर्मदा ही भेजती है कोई न कोई। हमें बस विश्वास रखना होता है।” — एक वृद्ध साधक

रात की निस्तब्धता में नर्मदा का संगीत

जब सूरज ढल जाता है और तट पर दीपक जलते हैं, तब हवा में एक अद्भुत शांति फैल जाती है। दूर कहीं आरती की ध्वनि, पास में बहती नदी की गूंज — यह दृश्य साधना के चरम का प्रतीक है। यहीं साधक अपनी थकान भूल जाता है और मन एकदम निर्मल हो जाता है।

राह कठिन है, पर लक्ष्य सरल — समर्पण

नर्मदा परिक्रमा का मार्ग आसान नहीं। पथरीले तट, धूप, भूख और अनिश्चित मौसम हर क्षण परीक्षा लेते हैं। लेकिन इन कठिनाइयों के बीच ही तप का सार छिपा है। यात्रा सिखाती है कि समर्पण ही साधना का अंतिम बिंदु है — जब व्यक्ति अपने अस्तित्व को नर्मदा में विलीन कर देता है।

यात्रा भीतर की है — यह समझना ही नर्मदा परिक्रमा का सबसे बड़ा संदेश है। बाहर का हर कदम भीतर की ओर बढ़ता है। नर्मदा की गोद में चलता यह मार्ग मनुष्य को विनम्रता, धैर्य और प्रेम सिखाता है।

समर्पण ही अंतिम साधना

नर्मदा किनारे साधु-संतों की एक परंपरा है — “चलते रहो, रुकना नहीं।” यह वाक्य जीवन का सार है। चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, नर्मदा जैसी निर्मलता बनाए रखना ही सच्ची साधना है।

आज जब मनुष्य सुविधाओं के मोह में उलझा है, तब नर्मदा परिक्रमा हमें याद दिलाती है कि त्याग में ही स्वतंत्रता है और समर्पण में ही मुक्ति

रिपोर्ट: विक्रम सिंह राजपूत

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