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जनपद करेली में भ्रष्टाचार का साम्राज्य

सरपंच-सचिव के दामन पर गबन के दाग

करेली जनपद में भ्रष्टाचार चरम पर — शिकायतों के बाद भी नहीं हो रही जांच

करेली जनपद आज एक खौफनाक हकीकत का प्रतीक बन चुका है। पंचायतों में ईमानदारी मर चुकी है, और ज़मीर बेचने की होड़ लगी हुई है। गांवों के कोनों में अब विकास नहीं, गबन और दलाली की बदबू फैली है। अधिकारी हों या सचिव, सब पर सवाल हैं — लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं।

ग्राम पंचायतों में फर्जी बिलों का खेल इस कदर बढ़ गया है कि कागज़ पर बनी सड़कें अब तक जमीन पर दिखाई ही नहीं दीं। सफाई कार्यों के नाम पर हर महीने राशि निकाली जा रही है, लेकिन नालियां गंदगी से बजबजा रही हैं। पंचायत भवनों पर ताले लटक रहे हैं, और सचिव फाइलों में करोड़ों का हिसाब दबाकर घूम रहे हैं।

ग्रामीणों में डर इतना है कि कोई भी खुलेआम बोलने को तैयार नहीं। “जिसने आवाज उठाई, उसे झूठे आरोपों में फंसा दिया जाता है,” — कहते हैं एक बुज़ुर्ग ग्रामीण, आंखों में आंसू और दिल में डर लिए।

प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय निर्माण, सड़क और नाली जैसे कामों में खुलेआम हेराफेरी की जा रही है। योजनाओं का पैसा सचिवों और सरपंचों की जेबों में जा रहा है, जबकि गरीब परिवार सालों से झोपड़ियों में गुजर-बसर कर रहे हैं। पंचायत के कर्मचारियों ने भी अब बोलना छोड़ दिया है — क्योंकि भ्रष्टाचार का विरोध करना यहां अपने पद और जान दोनों को जोखिम में डालना है।

“यहां फाइलों में विकास होता है, मैदान में तो सिर्फ जुल्म और लूट है।” — एक पंचायतकर्मी का दर्द भरा बयान।

डर का माहौल इतना गहरा है कि ग्रामों में कोई अधिकारी आते ही फुसफुसाहट शुरू हो जाती है — “अब कौन सी जांच की फाइल दबेगी?” जनता का विश्वास प्रशासन पर से उठ चुका है। आम लोग अब अपनी शिकायतें तक दर्ज कराने से डरने लगे हैं, क्योंकि हर शिकायत किसी नए प्रतिशोध की शुरुआत बन जाती है।

सूत्रों के अनुसार, जनपद कार्यालय में कई महीनों से भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतें लंबित हैं। फाइलें धूल खा रही हैं, और जिन पर जांच का जिम्मा है, वही अधिकारी खुद कमीशनखोरी में लिप्त बताए जा रहे हैं। विकास के नाम पर जारी फंड का बड़ा हिस्सा ‘कमीशन’ के नाम पर बंट जाता है, और गांव वहीं के वहीं सड़े-गले हालात में खड़े हैं।

“बेशर्मी की चादर ओढ़े बैठे अधिकारी अपने जमीर तक को बेच चुके हैं।” — एक स्थानीय पत्रकार ने कहा, “यहां सच बोलना अपने खिलाफ केस बुलाना है।”

करेली की जनता अब थक चुकी है। पंचायतों में जो डर, दहशत और साज़िशों का माहौल है, उसने गांवों की सामाजिक आत्मा को कुचल दिया है। लोग अब न तो शिकायत करते हैं, न उम्मीद रखते हैं — बस मन में एक सवाल दबा है: जिला पंचायत अधिकारी की चुप्पी कब टूटेगी?क्या जनपद करेली का यह अंधेरा कभी खत्म होगा?

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