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क्या रील बनाना सच में रोजगार है?

विश्लेषण | डिजिटल भारत के बदलते अर्थ में नया सवाल

Reel Making

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक हालिया बयान — “रील बनाना भी रोजगार है” — ने सोशल मीडिया और युवाओं के बीच नई बहस छेड़ दी है। सवाल यह है कि क्या वाकई मोबाइल से बनाई जाने वाली रीलें आज रोजगार का स्वरूप ले चुकी हैं?

हर रील रोजगार नहीं, पर हर रचनात्मक रील रोजगार का जरिया बन सकती है।

आर्थिक दृष्टि से: हां, यह रोजगार बन चुका है

भारत की डिजिटल इकॉनमी अब क्रिएटर इकॉनमी में बदल रही है। अनुमान के अनुसार, 2025 तक देश में 1.2 करोड़ से अधिक लोग सोशल मीडिया से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आय कमा रहे हैं। YouTube, Instagram, Moj, Josh और अन्य प्लेटफार्म अब स्वरोजगार के बड़े केंद्र बन चुके हैं।

सामाजिक दृष्टि से: सभी के लिए नहीं

लेकिन यह कहना कि हर रील बनाना रोजगार है, सामाजिक दृष्टि से सही नहीं। अधिकतर रीलर शौकिया हैं, जिनकी कोई नियमित आमदनी नहीं। रोजगार तभी माना जा सकता है जब काम में निरंतरता, आय, और बाजार से जुड़ाव हो।

सरकार और नीति की दिशा

सरकार Digital India और Skill India जैसे अभियानों के तहत डिजिटल क्रिएशन को वैकल्पिक रोजगार मान रही है। भविष्य में “डिजिटल कंटेंट क्रिएशन” को एक संगठित क्षेत्र के रूप में देखने की संभावना भी बढ़ रही है।

"जो रील समाज, बाजार और सूचना की ज़रूरत से जुड़ी है — वही रोजगार बनती है।"

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