*खेतिहर मजदूर महिलाओं की आम जिंदगी कितनी जद्दो जहद भरी?:नरसिंहपुर*
पार्वती बाई (परिवर्तित नाम) दूसरों के खेतों में काम करके बच्चों का पेट पाल रही हैं। पति के देहांत के बाद न तो कोई जमीन थी, न कोई कमाने वाला व्यक्ति, एक बेटा और एक बेटी,वह भी छोटे छोटे! घर में बीमार मां है, तीन साल से कैंसर से जूझ रही है ! तीन सदस्यीय परिवार का पेट भरने के लिए पार्वती बाई दूसरों के खेतों में काम करके किसी तरह रोजी-रोटी चला रही हैं।
आपने भी कभी ना कभी शहर के आसपास या गांव के खेतों में महिला समूहों को काम करते हुए देखा होगा!इनमें से अधिकांश महिलाएं खेतिहर मजदूर हैं! इन खेतिहर मजदूर महिलाओं की आम जिंदगी कैसी है और इन्हें अपने दैनिक जीवन में किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
दरअसल खेतिहर मजदूरी करने वाली महिलाओं की आम जिंदगी और दैनिक जीवन में आने वाली समस्याएं समान महसूस होती हैं!
खेत में काम करने का फैसला सहज नहीं था,किसी का पति शराब पीता है तो कोई अपने बच्चों को बाहर पढ़ाना चाहती है,किसी के घर में बुजुर्ग गंभीर बीमारी से ग्रसित है तो कोई गरीबी,मंहगाई के बोझ तले खेत में काम करने के लिए मजबूर हुई!
यहां तक कि महिला खेतिहर मज़दूरों को लगातार काम करना पड़ता है फिर चाहे वह गर्वभती ही हों! खेतों में उनके लिए कोई मातृत्व लाभ की सुविधा नहीं है!यह सरकारी कागजों में भले ही तमाम योजनाएं संचालित हो रही हैं लेकिन धरातल पर योजनाएं सुचारू रूप से क्रियान्वित नहीं की जा रही है,नतीजतन, महिलाओं को गर्भावस्था के अंतिम चरण तक काम करना पड़ता है और बच्चे को जन्म देने के कुछ दिनों के भीतर ही फिर से काम शुरू कर देती है!
सुबह 9 बजे से शाम तकरीबन 6 बजे तक खेत में हाड़ तोड़ मेहनत के बाद 250 रुपए मिलते हैं!शाम को थके हुए होने के बाद भी खाना बनाना और शराबी पति की मार और गाली सहन करना तो अब आदत में आ गया है!
यह भी विडंबना ही है कि, ऐसी मजदूर महिलाओं को मेहनत करने के बावजूद भी न तो पहचान मिलती है और न ही अधिकार।भले ही सरकार महिलाओं के हित में लाख दावे करे लेकिन हकीकत तो यह है कि एमपी में महिलाएं सुरक्षित नहीं है! मीडिया रिपोर्ट्स के मौजूदा आंकड़े तो यही बयान कर रहे हैं!
महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में एमपी नंबर वन पायदान पर है? पुरुष प्रधान समाज की इस तस्वीर को भी देखिए कि आज भी जितनी महिलाएं कृषि के काम में लगी हुई हैं, उनमें से 90 फीसदी के पास भूमि के स्वामित्व में बराबरी का अधिकार नहीं हैं।
दरअसल महिला खेतिहर मज़दूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा जैसी कोई चीज नहीं हैं। आप आंकड़े देखिए कि, आमतौर पर सामाजिक तौर से वंचित तबको की महिलाएं खेत मज़दूर होती है।
महिलाओं के लिए कानून में हिंदू उत्तराधिकार बिल 1956 के अनुसार यदि पुरुष की मृत्यु के बाद उसकी जमीन विधवा, बच्चे और मृतक की मां में बराबर बांटी जाएगी!यह कानून सिख, बौद्ध और जैन धर्मों के लिए है। वहीं, यहां तक कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार भी विधवा महिला को एक चौथाई का हिस्सेदार संपत्ति में माना गया है, लेकिन सामाजिक रीति-रिवाजों के चलते ऐसा बेहद कम हो रहा है कि कानून के अनुसार महिलाओं को संपत्ति में हक मिल रहा हो।
कानून भले ही महिलाओं को जमीन-जायदाद में से हिस्सा देता हो, लेकिन पुरुष प्रधान समाज और उसके अपने कानून उन्हें उनके इस हक से वंचित रखते हैं!
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