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*इनकी अश्लीलता के तो चर्चे ही चर्चे?* : *बेबी की बात चले तो आप समझ ही जायेंगे?*

भैया सबसे पहले तो हम बता दें कि,यहां वो वाली देवी की बात नही हो रही है,जिसका ज़िक्र करने से आपकी भावनाएं आहत हों। नहीं तो एक लेखक के लिए भावना आहत जैसी आफत बड़ी दुखदाई बन जाती है।

अब जब बेबी की बात चले तो आप समझ ही जायेंगे की किस देवी की बात चल रही है,वैसे तो अब तक छपी असंख्य पुस्तकों और ग्रंथों में इस देवी को तरह तरह से संबोधित कर अनेकानेक गुणगान किए गए हैं,हालाकि यह अधिकांश किताबी ही दिखाई देते हैं,और इसका किसी समुदाय विशेष से कोई संबंध नहीं है।इसलिए ये तारीफें और उपमाएं जंजीरों में तब्दील होने लगी!यही कारण है की ये आधुनिक देवी बेबी बनने की राह पर चल पड़ी?

देवी से बेबी के सफर में एक औरत ने बहुत कुछ सहा है! समय समय पर विद्वानों ने भी इन औरतों के पक्ष में बहुत कुछ कहा है!

अब सही भी है,और क्या फर्क पड़ता है,किसी सम्बोधन विशेष से,जबकि हकीकत गलियों में ढिंढोरा पीटकर रो रही हो?वैसे देवी से बेबी बनने में फायदा ज्यादा दिखाई देता है!देखो ना महान सम्बोधन भी अप्रत्यक्ष तौर पर सामाजिक जिम्मेदारियों और बंधन लाद देते हैं!

बेबी भी अब बेबो को देख देख कर मचलने लगी है, बेबो ने देखो क्या नही देखा!और ये बेबी बेचारी अभी भी बाबू सोना की बेबी बनकर घूम रही है!अरे हमें कोई दिक्कत नही है, घूमो खूब घूमो,भला हमें क्या पड़ी है!

मत करो सोलह श्रृंगार, मत करो अपनी संस्कृति का सम्मान, मत रखो रिश्तों की मर्यादा रखा क्या है इन सबमें?और वैसे भी दिया ही क्या है इस सबने?रोती रहती थी,बिलखती रहती थी,तब कोई पसीजता था क्या?कितना तड़पी है,अपनी आजादी के लिए,लैंगिक समानता के अधिकार के लिए!

अब जब बेबी अपनी जिन्दगी जी रही है,तो इतना गला काहे फाड़ रहे हो?कहो अपनी बेबी से, , जा बेबी , , जी, ले, , अपनी जिंदगी!नही भी कहोगे तो वो कौन सा सुनने,रुकने वाली है! अब हमारी बेबी आधुनिकता के घोड़े पर सवार हो गई है,तुम्हे कोई दिक्कत है क्या?

जब देखो तब तुम लोग नाटक मचाते रहते हो,बेबी ने ऐसे कपड़े पहने,बेबी के एक साथ चार बॉय फ्रेंड,बेबी ने बियर पी ली, बेबी बाबू की बराबरी करने लगी,ऑनलाइन बाबू से और ऑफलाइन रामू से मिलने लगी, बेबी इंस्टाग्राम की रील्स में धांसू मटकने लगी!तो आप लोगों की भला क्यों जलने लगी?क्या इसलिए की बेबी अब अपनी बनाई राह पर चलने लगी?

आज हर जगह बेबी की अश्‍लीलता के चर्चे ही चर्चे है। आगे भी रहने की पूरी संभावना है। यह बहस ही बेमानी है।खजुराहो और अजंता एलोरा की कलात्मक कृतियां इसकी निशानी है।

पहले बाबू कहते थे अपना तो तीन तीन से चक्कर चलता है, अब बेबी कहती है समानता के लिए मेरा भी मन मचलता है! अब तो बेबी खुद कहती है,इश्क का रास्ता तो जिस्म से होकर गुजरता है,खाली इबादत से काम कहां चलता है!इश्क तो बस नाम है,बेबी को भी सब चलता है!जमाना बदल गया प्यारे, अब तो सिक्का भी बेबी के नाम का चलता है!

नारी विमर्श के नाम पर साहित्‍य में अश्‍लीलता चल रही है,ये कहानियां भी तो बेबी के इर्द गिर्द घूम रही है! अब ये मत कहिएगा नारीवाद के नाम पर अश्लीलता को पोषण किया जा रहा है,वरना बेबी केस कर देगी की मेरा शोषण किया जा रहा है!

आज ये प्रश्न हम सबको अपने आप से करना हैं कि आज के समाज में स्त्री का क्या स्थान हैं क्या हम आज की स्त्री में.देवी का दर्शन करते हैं?

कौन बदन से आगे देखे औरत को 

सबकी आँखें गिरवी हैं इस नगरी में

किसी शायर ने भी खूब कहा है।

।। व्यंग्य।।




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