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पत्रकारिता पर यह हमला जनता के ही वजूद पर हमला है!*

क्या आप पत्रकारिता करते हैं और वह भी इस शहर में तो यह खबर आपके काम की हो सकती है!आपको जानना चाहिए कि कैसे विपरीत हालातों में पत्रकार पत्रकारिता कर रहे हैं!

कुछ दिनों पहले घर में घुसकर पत्रकार पर हमला और फिर उसके बाद हत्याकांड का खुलासा करने की कोशिश करने वाले पत्रकार को खबर चलाने के कारण फोन पर धमकी! हैं न हैरत की बात!कब कौन सिरफिरा किसी पत्रकार पर हमला कर दे और कौन कब धमकी दे दे!ऐसे हालात में पत्रकार अपना काम कैसे कर सकता है?यह दो मामले तो सिर्फ उदाहरण है।ऐसे और भी अनेक मामले हैं जब पत्रकारों को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्यों कि उन्होंने सच्चाई उजागर की थी।

सरकारों और प्रशासन का गुणगान करने वाले पत्रकारों पर इस तरह की खबरों का कोई असर नहीं पड़ने वाला है! इस तरह के पत्रकार भी हमारे बीच में है! और दूसरी तरफ हम जैसे पत्रकारों को श्रेणी भी है जो चिन्ता के साथ खबरों और तथ्यों को जनता के सामने रख रहे हैं और उन्हें कानूनी पेचीदगियों में फसाने से लेकर धमकाने और हमले का प्रयास किया जा रहा है!

इस तरह की घटनाएं यह बता रही हैं कि अब पत्रकारों को चुप रहना होगा!यह महज पत्रकारों पर हमला नहीं है! दरअसल सवाल तो यह है कि जनता इसे पत्रकारिता पर हमले के रूप में देखती है या नहीं? हालाकि जब जनता की ही परवाह किसी को नहीं रही तो फिर पत्रकारों पर हमले या कानूनी पेचीदगियों में फसाए जाने से किसी को क्या फर्क पड़ेगा? पत्रकारिता पर यह हमला जनता के ही वजूद पर हमला है! लेकिन इतना सोचने और समझने की शक्ति किसके पास बची है?

लोग सिर्फ देखते रह जा रहे हैं!जमीनी स्तर पर पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों के लिए लेकिन सबकुछ इतना सुलभ नहीं है।आप बेबसी और नाइंसाफी की हदों को पार होते हुए देख रहे हैं! स्वतंत्र पत्रकारों से तकलीफ होने लगी है और आप जनता ने भी कभी न कभी इसे देखा और महसूस किया होगा।

आपको यह समझना होगा कि ऐसे हालात रहते हैं तो क्या आपको निष्पक्ष और पारदर्शी खबरें प्राप्त हो सकती है? साफ है जो बोलेगा उसे चुप करा दिया जाएगा। दरअसल पत्रकारों की आवाज को दबाने के जरिए आम जनता की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।

जारी: 









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