*पंचायत में हुए गबन पर जांच के नाम पर लीपापोती करने की नौटंकी कब बंद होगी?:नरसिंहपुर*
अधिकारी किस तरह अपनी जिम्मेदारी गंभीरता या गैर गंभीरता से निभा रहे हैं,आप कार्यशैली की इस प्रक्रिया से अच्छी तरह वाकिफ होंगे ही!आखिर पंचायत में हुए गबन पर जांच के नाम पर लीपापोती करने की नौटंकी कब बंद होगी?और क्या आप इस तरह की जांच से संतुष्ट हैं?
अधिकारियों ने जनता की परवाह करना बंद कर दिया है? सवाल तो यह भी है कि जब जनपद में बैठे अधिकारी खुद ही फर्जी बिल पास कर कमीशन की मलाई खा रहे हों, आखिर वे स्वयं ही फर्जी बिलों की जांच कैसे कर पाएंगे? इतना तो आप समझते ही होंगे!
ऐसा लगता है जैसे गबन की शिकायतों के मामले में लीपापोती करना नरसिंहपुर की प्रशासनिक व्यवस्था का हिस्सा बन गई है?जनपद अधिकारियों की लीपापोती और जांच के नाम पर खानापूर्ति करने की आदत के कारण ही जैसा चला आ रहा था वैसा ही चले जा रहा है, है ना मजेदार बात?और जनता सोचती ही रहती है कि बदलाव क्यों नहीं आ रहा?
आप देखेंगे कि अधिकारियों द्वारा थोक के भाव में आश्वासन दे दिया जाता है और वादे कर दिए जाते हैं कि,यह होने वाला है यह चार दिन बादहोगा और वह भी!जैसे अधिकारियों के हाथों में कोई अलादीन का चिराग लग गया हो!
इन्हीं अधिकारियों के ऐसे आश्वासनों और वादों के कारण समाचारों की सुर्खियों में भी बहार आ जाती है! अब भले ही इसे आप गोदी मीडिया से जोड़कर देखें तो यह एक अलग बात है!
क्या वाकई ऐसी लीपापोती और खानापूर्ति करने वाली व्यवस्था में दम नहीं घुटता है?मेरा आपसे यह सवाल है,क्या आप इस व्यवस्था के आदी हो गए हैं?
गबन के मामलों से आपका ध्यान भटकाने के लिए तरह तरह के आश्वासन, वादे और विकास के आंकड़े बताए जाते हैं और अक्सर आम जनता इस तरह के जुमलों के झांसों में आ भी जाती है!
नरसिंहपुर जिले में पंचायत में गबन के मामलों में जांच अधिकारी कौआ कान ले गया के आधार पर करते हैं शायद!इसलिए तो ग्रामीणों ने कहा जैसे शब्दों से जांच रिपोर्ट को कमजोर करने की कोशिश की जाती है?ऐसा नहीं है कि इस तरह के मामलों में जांच अधिकारी मौके पर निरीक्षण नहीं करते किन्तु जांच रिपोर्ट को कमजोर करने के लिए इस तरह की भाषावली का इस्तेमाल किया जाता है!
इससे एक तो यह फायदा हो जाता है कि,ग्रामीणों को लगता है हमारे कहने पर जांच में राशि वसूली योग्य पाई गई और दूसरा लिए हुए लिफाफे का कर्ज भी मामले को ढीला करके उतर जाता है!
इस तरह की जांच प्रक्रिया से ग्रामीण उम्मीद लगाए हुए हैं और मजेदार बात यह है कि अधिकारी भी कार्यवाही करने का पूरा दिखावा करते हैं! बकायदा इसके लिए पूरा अमला एक सिस्टम से काम करता है, काफिले दौड़ाए जाते है, वार्ता, आश्वासन और लीपापोती खानापूर्ति वाली जांच कमेटी बिठा कर बकायदा जांच भी कराई जाती है?
क्या ऐसी जांच के नतीजे सकारात्मक आ सकते हैं? क्या ऐसे अधिकारियों पर भरोसा किया जा सकता है जो जांच रिपोर्ट को कमजोर तैयार करते हैं?ताकि लिफाफे देने वाले को भी बचाया जा सके!
हाल ही में ग्राम पंचायत में गबन का एक अनोखा मामला सामने आया, जहां तालाब जीर्णोद्धार के नाम पर राशि का आहरण पंचायत ने कर लिया!अब यहां चौंकाने वाली बात यह है कि,वहां कोई तालाब था ही नहीं!
अधिकारी जानते हैं कि कौन उठाएगा सवाल!इसलिए जांच रिपोर्ट मन के मुताबिक तैयार कर ली जाती है? संघर्ष आखिर कहां नदारद हो जाता है?
यही वजह है कि,आज जिले की किसी भी जनपद के अन्तर्गत आने वाली ग्राम पंचायत में आप रहते हों, अमूमन सभी जगह हालात एक से हैं!
कुछ ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने तो गबन के मामले में न्यायालय का रुख किया और कुछ अन्य पंचायतों में धरना प्रदर्शन भी किया गया! लेकिन नतीजों को संतोष जनक नहीं कहा जा सकता है!
इस तरह के मामलों में होने वाली जांच के नतीजे अक्सर गोलमाल आते हैं, ग्रामीणों को लगता है कि उन्हें ठग लिया गया!लेकिन सवाल उठाने की हिम्मत कौन करे?
कैसे पूछें अधिकारियों से की आखिर जांच किस आधार पर की गई थी? क्यों अन्य जिम्मेदारों से जवाब तलब नहीं किए गए?क्या बिना बिल को क्रॉस चेक किए सरकारी राशि को सीधे भ्रष्टाचारियों की तिजोरी तक पहुंचाया जा रहा था?अधिकारियों ने जांच रिपोर्ट पर ग्रामीणों से वार्ता क्यों नहीं की?
फर्जी बिलों के मामले और अधिकारियों की कार्यशैली को देखकर तो यही लगता है कि, बिना देखे बिल पास किए जा रहे थे!
।। समीक्षा।।
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