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*मोहपानी को नहीं मिला न्याय?:गाडरवारा:नरसिंहपुर*

।। विश्लेषण।।



प्रशासन ने जिस तरह की लचर कार्यशैली का यहां इस्तेमाल किया है,उससे यह साफ जाहिर होता है कि,प्रशासन में बैठे कुछ लोग चाहते ही नहीं थे कि ,अनियमितताओं और आर्थिक अपराधों के इस मामले की जांच हो?और यही वजह है कि, दिनांक 6 अक्टूबर को पन्द्रह साल की जांच पांच दिन में करने का जादुई आश्वासन दे डाला!

लेकिन आज दिनांक 8 दिसंबर बीत जाने के बाद भी जांच और कार्यवाहियों का दूर दूर तक कोई नामों निशान नहीं है! जाहिर सी बात है इस दौरान तथ्यों से छेड़छाड़ करने का और दोषियों को बचने का भरपूर समय उपलब्ध हुआ!

इससे झुनिया बाई सरपंच,राजू सरपंच पति, जितेंद्र कौरव के हौसले और भी बुलंद हो गए!और अपनी सफाई में तमाम झूठे सच्चे ज्ञापन इत्यादि से खुद को पाक साफ साबित करने की कोशिश की! जितेंद्र कौरव तो पहले ही कह रहा था,कि मुझे कुछ नहीं होगा,और झुनिया और राजू को भी कछु ने हुईये!

हां अलबत्ता पूर्व सरपंच लाल बाई और पूर्व सरपंच मुरारी पर जमकर रिकवरी की गाज गिरी! इस आंदोलन से सबसे अधिक नुकसान लाल बाई और मुरारी को पहुंचा, ऐसा प्रतीत होता है!

आखिर क्या मांग थी आंदोलनकारियों की?


ग्रामीणों ने प्रशासन को अवगत कराते हुए अपनी मांग को लेकर स्पष्ट बताया गया कि,सरपंच विगत दो साल से पंचायत में नहीं आई है, वहीं सरपंच पति द्वारा सरपंच के फर्जी हस्ताक्षर कर सरकारी राशि का दुरुपयोग किया जा रहा है,और तेंदूखेड़ा निवासी जितेन्द्र कौरव द्वारा अघोषित अवैध तरीके से पंचायत चलाई जा रही है! जांच प्रक्रिया के दौरान इनमें से अधिकांश दावे सही साबित भी हुए!

ग्रामीणों में जमकर आक्रोश था,नतीजतन विरोध रैलियां निकाली गई, नारेबाजियां हुई, जितेन्द्र कौरव के पंचायत चलाने से ग्रामीण इतने रूष्ट थे कि, पुतला दहन के दौरान जितेंद्र तेरी तानाशाही नही चलेगी, जैसे नारे लगाए गए! शव यात्रा निकाली गई!लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात, , ?

देखिए यह तो स्पष्ट ही था कि, पांच दिन में पन्द्रह साल की जांच और कार्यवाही किसी भी स्थिति में संभव थी ही नहीं!लेकिन प्रशासन ने आन्दोलन को ठंडा करने के लिए इस रणनीति का उपयोग किया और इसमें प्रशासन काफी हद तक सफल भी हुआ!

ऐसे में आज मोहपानी के पास सिर्फ इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है! धरने प्रदर्शन की आग ठंडी पड़ गई है! ग्रामीणों का तंत्र पर विश्वास डगमगाया तो है!

जारी: 

यह प्रशासन की सोची समझी रणनीति के तहत धरना प्रदर्शन को समाप्त करने का कूटनीतिक प्रयास काफी हद तक सफल भी हुआ! इसके साथ ही जिले में एक अघोषित संदेश भी प्रशासन का पहुंचा है कि यदि धरना प्रदर्शन भी करोगे तो उसे इसी तरह कूटनीति से समाप्त कर दिया जाएगा?



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