ज्ञापनवीर : फोटो लो, सिस्टम भुलाओ!
Stringer24 व्यंग्य रिपोर्ट
अब ज्ञापन देना हमारे लोकतंत्र का नया उत्सव बन चुका है। हर दूसरा नेता, हर तीसरा संगठन और हर चौथा छात्र एक ही मिशन पर निकल पड़ा है — “ज्ञापन दो, फोटो लो, सिस्टम को भूल जाओ!”
“जहां तर्क खत्म होता है, वहां ज्ञापन शुरू होता है — और जहां ज्ञापन खत्म होता है, वहां पोस्ट वायरल होती है।”
📜 ज्ञापन अब समस्या नहीं, पब्लिसिटी का प्रमाणपत्र है
पहले लोग मुद्दा सुलझाने जाते थे, अब कैमरा बुलाने जाते हैं। सड़क टूटी हो या नाली बंद — फोटो खिंचवा लो, पोस्ट डाल दो। बाकी फाइलें धूल खाती रहेंगी, पर चेहरा अखबार में चमक जाएगा।
🎭 ज्ञापन एक कागज़ नहीं, पोज़ है
ज्ञापन देने के बाद चेहरे पर वह आत्मविश्वास — मानो आज ही क्रांति होने वाली है। “सर, जनता की आवाज़ उठा दी!” ऐसा लगने लगता है कि लोकतंत्र की दिशा आज से बदल गई। लेकिन असल में, ज्ञापन सिर्फ सेल्फी का बहाना है।
🏛️ अधिकारी भी जानता है खेल
फोटो वाले ज्ञापन के बाद जब वही अधिकारी फ़ोन पर बुलाता है — “भाई साहब, वो छोटा-सा काम अटक गया है…” तो जनसेवा फिर निजी सेवा में बदल जाती है। और नेता मुस्कुराता है — “काम हो गया, भाई!”
📸 लोकतंत्र में नया पद — ‘ज्ञापनवीर’
ये वही हैं जो हर मुद्दे पर सबसे पहले फ्रेम में आते हैं। समस्या कोई भी हो — बयान उनका पहले आता है। फर्क सिर्फ इतना है कि उनका संघर्ष कैमरे के सामने होता है, और जनता की परेशानी कैमरे के पीछे छूट जाती है।
“जो नहीं कर सकता समाधान — वही करता है ज्ञापन।”
🧾 निष्कर्ष
ज्ञापन अब आंदोलन नहीं, आयोजन बन गया है। समस्या से ज्यादा, उसे दिखाने की कला पर ध्यान है। लोकतंत्र में ज्ञापन देना बुरा नहीं — पर अगर उसका मकसद सिर्फ चेहरा चमकाना है, तो फिर यह राजनीति नहीं, ‘पब्लिसिटी का पर्व’ है।
© Stringer24 News | व्यंग्य की सच्ची आवाज़ | लेखक: विक्रम सिंह राजपूत
 
