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पंचकोसी परिक्रमा यात्रा के दौरान इन नियमों का पालन करेंगे विक्रम सिंह राजपूत

नरसिंहपुर। तीर्थ यात्रा का वास्तविक अर्थ केवल चलना नहीं, बल्कि आत्मशोधन और साधना की अनुभूति करना है। धर्मशास्त्रों में निर्देश है कि तीर्थ यात्रा सदैव पद यात्रा के रूप में की जानी चाहिए — नर्मदा तट की पंचकोसी परिक्रमा भी इसी शास्त्रीय परंपरा का जीवंत उदाहरण है। विक्रम सिंह राजपूत ने आगामी पंचकोसी परिक्रमा यात्रा के लिए यह संकल्प लिया है कि वह प्राचीन नियमों और आध्यात्मिक अनुशासन का पूर्ण पालन करेंगे।

“यात्रा केवल कदमों की नहीं, मन की भी होती है। जहां वाणी, कर्म और विचार सभी एक साथ तपस्वी हो जाते हैं।”

🕉️ शास्त्रीय नियम जिनका पालन करेंगे:

  1. नित्य नर्मदा स्नान: प्रत्येक दिन नर्मदाजी में स्नान करेंगे तथा जलपान भी रेवा जल का ही करेंगे।

  2. दान ग्रहण निषेध: प्रदक्षिणा के दौरान किसी प्रकार का दान नहीं लेंगे। हां, श्रद्धापूर्वक कोई भोजन करावे तो उसे स्वीकार करना धर्म का अंग है।

  3. वाणी का संयम: व्यर्थ वाद-विवाद, चुगली या पराई निंदा से दूर रहेंगे। सदा सत्यवादी और शांत भाव में रहेंगे।

  4. कायिक तप का पालन: देव, द्विज, गुरु और विद्वान का पूजन, शौच-संयम तथा ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे।

  5. मानसिक तप: “मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्म विनिग्रह” — गीता के इस संदेश के अनुसार प्रतिदिन गीता व रामायण पाठ का अभ्यास करेंगे।

  6. संकल्प और प्रसाद: परिक्रमा प्रारंभ से पूर्व नर्मदाजी में संकल्प करेंगे और ‘माई की कढाही’ प्रसाद के रूप में साधु-संत, कन्याओं व अतिथियों को भोजन कराएंगे।

  7. तट मर्यादा: दक्षिण तट से पाँच मील और उत्तर तट से साढ़े सात मील की दूरी से अधिक दूर नहीं जाएंगे।

  8. नर्मदा पार निषेध: नर्मदा जी को कहीं भी पार नहीं करेंगे। केवल सहायक नदियों को आवश्यकता पड़ने पर एक बार पार करेंगे।

  9. चातुर्मास में परिक्रमा निषेध: देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक परिक्रमा नहीं करेंगे। यह समय विश्राम, मनन और साधना का रहेगा।
“नर्मदा मैया की परिक्रमा आत्मा को शुद्ध करने का मार्ग है। इसमें हर कदम मां के चरणों की ओर बढ़ता है।”

विक्रम सिंह राजपूत ने बताया कि इस यात्रा के दौरान वे केवल नर्मदा तटवर्ती मार्गों पर रात्रि विश्राम करेंगे, ग्रामों में धर्मचर्चा व कथा श्रवण करेंगे और मां नर्मदा के प्रत्येक तट को प्रणाम कर आगे बढ़ेंगे। यात्रा का उद्देश्य न केवल आत्मिक शांति, बल्कि समाज में धर्म, संयम और सत्य के संदेश को प्रसारित करना भी रहेगा।

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