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सांकेतिक चित्र image credit goes to shitterstock

*नरसिंहपुर एक ऐसा शहर जो आपसे ऐसे तरीके से बात करता है जैसा कोई और शहर नहीं करता!*

"मैं नरसिंहपुर बोल रहा हूं!" पुस्तक से कुछ अंश, , 

।। संवाद पाठकों से , ,।।

आज का यह संवाद एक पत्रकार और जनता के नाते तो बिल्कुल भी नहीं है।यह संवाद है एक लेखक का अपने पाठक से। बस कुछ ही दिनों में वो घड़ियां आने वाली हैं,जब मेरे द्वारा लिखित पहली पुस्तक "मैं नरसिंहपुर बोल रहा हूं!" बिक्री के लिए बाजार में आने वाली है। प्रकाशन पर जाने के पूर्व ही पुस्तक की 65 प्रतियां प्री बुक कराई जा चुकी हैं। चार वर्षों की यह तपस्या अब पूर्ण होने जा रही है और इसका सारा श्रेय मैं अपने पाठकों/दर्शकों को देना चाहूंगा, क्यों कि एक लेखक अपने पाठकों के बिना कुछ नहीं है और मैं सौभागशाली हूं कि आज हमारा परिवार चालीस लाख से अधिक पाठकों का आंकड़ा छू चुका है।

चार वर्षों का यह सफर इतना आसान नहीं था, तमाम तरह की दुश्वारियां भी सामने थी,लेकिन जैसा कि आपने हर बार ही मेरा साथ दिया और मुश्किलों भरा यह सफर कब आसान होने लगा पता ही नहीं चला। इसलिए आज इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करता हूं कि, हां,पाठक ही मेरी दुनिया है! क्यों कि एक लेखक का अस्तित्व ही अपने पाठकों से है।

आपने जितना प्यार मुझे दिया है,मैने इसकी कभी कल्पना ही नहीं की थी। मैं लिखता गया और आप मुझे पढ़ते रहे, धीरे धीरे यह संबंध एक पाठक और लेखक में परिवर्तित हो गया।

ऐसे अनेकों पाठक हैं,जो अक्सर व्यक्तिगत तौर पर अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं।कभी कॉल के जरिए,तो कभी ईमेल या व्हाट्सएप संदेश के माध्यम से और अधिकतर का मैं जवाब भी देता हूं! हो सकता है कि समयाभाव के कारण कभी वार्ता कर पाना संभव नहीं हो सका होगा, इसके लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थी हूं।

आप सबने ही मेरा हर समय साथ दिया और इस पुस्तक को लिख पाना भी इसलिए ही संभव हो सका। किसी ने आर्थिक सहयोग किया तो किसी ने तथ्यों तक पहुंचने और जानकारियां जुटाने में मदद की और किसी ने अन्वेषणों और विश्लेषणों के दौरान अपने घर के दरवाजे मेरे लिए खोल दिए।

इसलिए यहां पर किसी का भी एक का नाम लिखना किसी दूसरे के साथ अन्याय करने जैसा हो जाएगा।समाज एक लेखक को कितना चाहता है और लेखक की कितनी परवाह करता है,यह भी मै आप सबके बीच जाकर ही समझ पाया हूं।

आगामी 13 जनवरी को मेरे द्वारा लिखित पहली किताब "मैं नरसिंहपुर बोल रहा हूं!" का पुस्तक परिचय समारोह आयोजित किया जा रहा है। पुस्तक का सांकेतिक विमोचन माकपा/किसान नेता जगदीश पटेल जी द्वारा किया जाएगा और इसके बाद ही सोमवार से 195/ रु बिक्री मूल्य के साथ pdf फॉर्मेट में पुस्तक नेट पर उपलब्ध रहेगी। पुस्तक की हार्ड प्रति 26 जनवरी को पाठकों के हाथ में होगी।

यह आप पाठकों के कारण ही संभव हो पाया है। सच्चे मायनों में यह पुस्तक आपकी है, मैं तो लेखन के जरिए एक माध्यम मात्र हूं, पुस्तक को आप तक पहुंचाने का। यह पुस्तक आप प्रिय पाठकों को समर्पित है।

बात तो तकरीबन 35,40 साल पुरानी है, लेकिन कुछ यादे ऐसी होती है जो बस दिलो दिमाग में बैठ जाती है हमेशा के लिए।

ऐसा लगता है जैसे आप किसी ऐसे शहर में हैं जिसका इतिहास है। एक ऐसा शहर जिसकी अपनी पौराणिक स्थिति है। एक ऐसा शहर जो आपसे ऐसे तरीके से बात करता है जैसा कोई और शहर नहीं करता।

जारी : 



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