*मोहपानी को आपकी जरूरत है!* ।। रविवारीय विशेषांक: मेरी कलम से ।।
नमस्कार मैं आपका दोस्त विक्रम सिंह राजपूत एक बार फिर आपके सामने हाजिर हूं, मोहपानी की दास्तान के साथ!आज का यह अंक कई मायनों में खास है,तो आइए बिना ज्यादा वक्त जाया करते हुए, चलते हैं मुद्दे की बात पर, ,मोहपानी की दास्तान पर!
मोहपानी को आपकी जरूरत है!, , , आप सोच रहे होंगे कि, आखिर यह कैसी बात है?इसका मतलब क्या है?
मैने आदिवासियों की जीवन शैली ,उनके खान पान, धार्मिक मान्यताओं,उनकी संस्कृति और आचार विचार को नजदीक से विश्लेषण किया है। ना सिर्फ इस धरने प्रदर्शन के दौरान बल्कि इसके एक वर्ष पूर्व से,जब 2023 में अगस्त माह में जब पहली बार जाना हुआ था!
इस दौरान मैं अनेकों ऐसी बातों और समय का गवाह बना, जिन्हें मैंने अनेकों बार आपके साथ साझा किया,और उनका भी जिससे अब तक आप अनजान हैं!
सबसे पहले तो आपको बता दूं कि,आज भी आदिवासियों का शैक्षणिक स्तर काफी कम है और वे आज भी सादगी भरा जीवन जी रहे हैं, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते!
यदि आप इनके एक रात के भी मेहमान बनते हैं तो ये आपको नई रजाई या कंबल और बिछाई दे देंगे और खुद चादर ओढ़कर सो जाएंगे! बिना चटपटे मसाले का सादा भोजन,जिसमें की आमतौर पर दाल चावल नियमित शामिल रहता है! कुछ लोग शराब का सेवन करते हैं किंतु अधिकांश आज भी इसे सामाजिक बुराई मानते हैं और शराब का सेवन करने वालों पर जुर्माना इत्यादि भी लगाया जाता है, कई बार तो समाज से बहिष्कृत भी कर दिया जाता है!
लेकिन इस सबके बावजूद भी आदिवासी अब तक इतने पिछड़े हुए है क्यों?क्या इसका कोई जवाब है?
मैने देखा है कि आज भी आदिवासियों में दागना प्रथा चलती है,जिसमें बच्चे को कोई भी शारीरिक समस्या होने पर ओझा टाईप का कोई व्यक्ति किसी गर्म लोहे की वस्तु से बच्चे के शरीर पर दागता है! जबकि बच्चे को अस्पताल ले जाना चाहिए!
वैसे अगर आदिवासियों की सामूहिक एकता बेमिसाल है,सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक कोई भी कार्यक्रम हो, प्रत्येक परिवार अपनी सहभागिता और सहयोग देता है! हर मसले को आपसी वार्ता से सुलझाने की भरसक कोशिश की जाती है!
टोना टोटका,गुनिया ओझा,भूत प्रेत, डायन,डाकन जैसी बातों पर आज भी विश्वास किया जाता है!जब भारत विश्वगुरू कहला रहा है,आप देखिए कि आज भी आदिवासी किस पिछड़े दौर में जी रहे हैं! क्या आप यकीन कर सकते हैं?
जहां तक अधिकारों को जानने की बात करें तो आज भी अधिकांश आदिवासी अपने मौलिक अधिकारों से भलीभांति परिचित नहीं है! हालाकि आज तकनीक ने बहुत मदद की है,फिर भी स्थिति किसी भी भी सूरत में संतोषजनक नहीं कही जा सकती!बौद्धिक निर्णय लेने के मामले में शिक्षा की कमी ने आदिवासियों की स्थिति को आज भी दयनीय बना रखा है!
बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे ग्राम में जीवन शांत और ठहरा हुआ प्रतीत होता है, हालाकि यह शांति थोथी है,क्योंकि आदिवासियों में असंतोष की स्थिति है!यह पिछड़ापन कहीं न कहीं उन्हें भी खलता है! एक टिस है जो कभी आंखों में तो कभी जुबान तक आ ही जाती है!
अपने हैं पर फिर भी अपने नहीं हैं! जैसी बातों से भी आदिवासियों को दो चार होना पड़ता है! गंदी राजनीति ने यहां भी एक ऐसी दीवार खड़ी कर रखी है, जिसका सिरा कुर्सी की सीढ़ी पर खत्म होता है! बेहद भोले भाले आदिवासी हमेशा से ही लूटते रहे हैं! जिसने जैसा चाहा,वैसे ठगा! उस पर सरकार की मंशा और सरकारी कारिदो का करप्शन!
जारी :