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*गुड़ भट्ठियों पर महिला मजदूर?* मजदूर औरत दोहरी शोषण का शिकार!

।। द्वितीय अंक ।।

कृषि क्षेत्र से लेकर अंसगठित क्षेत्रों में महिला श्रमिकों के अभूतपूर्व योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

मजदूरी के क्षेत्र में एक तिहाई महिला मजदूरों की मौजूदगी है जो की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में अपना खास योगदान देती है।

आज महिला सशक्तिकरण के इस दौर में जब हम देखते हैं कि महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दे रही हैं तब एक पल के लिए यह एहसास भी नहीं होता है कि उन्हीं महिलाओ के साथ मजदूरी के क्षेत्र में भेदभाव और असमानता का व्यवहार किया जा रहा है!

मगर स्थिति बिल्कुल इसके उलट है, क्योंकि यह तस्वीर का एक पहलू है।

जब हमने गुड़ भट्टीयों पर रहने वाली इन महिला मजदूरों के जीवन के बारे में जानकारियां जुटा तब कुछ चौंकाने वाले मामले भी सामने आए। कुछ महिला मजदूरों ने अपना दर्द बताते हुए बताया कि कई बार तो पति, पत्नी की कमाई पर बैठे-बैठे रोटियाँ तोडता है और शराब-जुए को अपना हिस्सा बना लेता है इसी वजह से अक्सर अपनी पत्नी के साथ मारपीट गाली गलौच भी करता रहता है  और अगर पत्नी कभी उसका विरोध करती है तो उसके चरित्र पर लांछन लगा  दिया जाता है। इस प्रकार मजदूर औरत दोहरी शोषण का शिकार होती रहती है और समाज और कानून व्यवस्था सिर्फ मुक दर्शक बने देखते रहते हैं?

इन गरीब मजबूर महिला मजदूरों की गंभीर और अलग समस्याएं है, जिनकी न तो पहचान की जाती है और न इसकी जरुरत समझी जाती है!

महिला कामगारों और असंगठित क्षेत्र में महिलाओं के साथ हिंसा और यौन शोषण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

समाज का एक दुखद पहलू यह भी है कि आज भी उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है।

कई बार तो  साथ में ही काम कर रहे मजदूरों का व्यवहार भी ठीक नहीं होता है। ऊपर से ठेकेदार की मनमानी के किस्तों से तो अखबार मैगजीन और किताबें भरी पड़ी है!

मजबूर मजदूर-औरतों को बच्चा पैदा करने के लिए भी मजबूर किया जाता है और अपने दुधमुंहे बच्चे को किसी पेड़ के नीचे बांधकर तपती धूप में काम करना उसकी मजबूरी होती है। मजदूर महिला यह जानती है कि यदि मिस्त्री या ठेकेदार असन्तुष्ट हो गए तो अगले दिन उसे मजदूरी मिलने से रही।

मजदूर महिलाएं यह सोचती हैं कि पति के अत्याचारों से तंग आकर अगर वे अपने पति का घर त्याग भी देगी तो उसे समाज द्वारा अपमानित और लाछित होना पड़ेगा उनके चरित्र पर ही उगलियाँ उठाई जाएंगी।

इन गरीब मजबूर मजदूर महिलाओं को छेड़छाड़ और यौन शोषण का सामना तो अक्सर ही करना पड़ता है लेकिन जुबान बंद रखना मजबूरी है क्योंकि अगर आवाज उठाएंगी तो अगली बार से इन्हें काम ही नहीं मिलेगा फिर बच्चों का पेट कैसे भरेगा? द्विअर्थी शब्दों में अश्लीलता भरे टिप्पणियों का सामना करना इन महिला मजदूरों की आदत हो गई है! आप ऐसा कह सकते हैं लेकिन उन पर क्या गुजरती है इसका अंदाजा आप शायद नहीं लगा सकते हैं।

बातचीत के दौरान एक महिला ने बताया कि माहवारी या गर्भधारण के दौरान भी महिला मज़दूरों को काम करना पड़ता है। यह हमारे लिए असहनीय होता है।

अगर आप कभी किसी खेत से गुजरे हो जहां गन्ना कटाई चल रही हो या गुड़ की भट्टी पर गुड़ बनाने का काम चल रहा हो तब आपने शायद गौर किया होगा कि कई बार गर्भवती स्त्रियां भी काम पर मौजूद दिखाई देती हैं और हम इसे सामान्य दिनचर्या का हिस्सा जानकर आगे बढ़ जाते हैं।

जब हमारे संवाददाताओं ने इन महिला मजदूरों से बात की तब बात के दौरान महिला मजदूरों का दर्द छलक उठा और चेहरे की उदासियों साफ बता रही थी कि आज भी महिला सशक्तिकरण के दौर में महिला के सशक्त होने की बात कितनी सच्ची और कितनी झूठी है!

क्या आप सोच सकते हैं कि आखिर कितना मुश्किल होता है लगातार मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाओं के दायरे में रहकर अपने बच्चों का पेट पालने के लिए मज़दूरी करना?

एक औरत महज औरत ही नहीं होती है वह इस संसार की रचयिता है।

लेकिन यह पुरुष प्रधान समाज है! वह स्त्री की पूजा देवी के रूप में करता तो है! लेकिन स्त्री का देवी की तरह सम्मान नहीं करता है?

जब शोषण शिकार मजदूर औरत बुढ़ापे की दहलीज पर पाँव रखती है इसका जीवन और भी दयनीय हो उठता है।

कृषि क्षेत्र में बड़ा योगदान देने बाली महिला खेत मज़दूरों का कोई अस्तित्व ही नहीं है?

जारी ;


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